Thursday, March 30, 2023
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Capsicum Cultivation: जानिए कौन-कौन सी हैं शिमला मिर्च की उन्नत किस्में, साल में तीन बार लें पैदावार

Capsicum Cultivation: शिमला मिर्च एक ऐसी सब्ज़ी है, जिसकी मांग पिछले कुछ समय में बहुत बढ़ी है। चाइनीज़ व्यंजन तो शिमला मिर्च के बिना अधूरे हैं। इसके अलावा सलाद के रूप में भी लोग शिमला मिर्च खाना पसंद करते हैं। इसमें विटामिन सी, ए और बीटा कैरोटीन की भरपूर मात्रा होती है। इसलिए लोग इसे किसी न किसी रूप में अपनी डाइट में ज़रूर शामिल करते हैं। शिमला मिर्च की बढ़ती मांग को देखते हुए यह किसानों के लिए मुनाफ़े का सौदा साबित हो सकती है। देश के वैज्ञानिक शिमला मिर्च की उन्नत किस्में विकसित करते रहे हैं, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिले। 

Capsicum Cultivation हमारे देश में शिमला मिर्च की खेती काफ़ी समय से हरियाणा, पंजाब, झारखंड, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक में की जाती रही है, लेकिन अब तो पूरे भारत में इसकी खेती होने लगी है। शिमला मिर्च मुख्य तौर पर हरी, लाल और पीली रंग की होती हैं। अगर आप भी शिमला मिर्च की खेती करने की सोच रहे हैं, तो इसकी कुछ उन्नत किस्मों की जानकारी होना ज़रूरी है।

Capsicum Cultivation
Capsicum Cultivation

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Capsicum Cultivation: शिमला मिर्च की उन्नत किस्में

बॉम्बे (रेड शिमला मिर्च)- शिमला मिर्च की यह किस्म जल्दी तैयार हो जाती है। इसके पौधे लंबे, मज़बूत होते हैं जबकि शाखाएं फैली हुई होती है। यह किस्म छायादार जगह में अच्छी तरह विकसित होती है। पहले इस मिर्च का रंग गहरा हरा होता है, लेकिन पकने के बाद यह लाल रंग का हो जाता है। इसकी ख़ासियत यह है कि यह जल्दी खराब नहीं होता।

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ओरोबेल (यलो शिमला मिर्च)- शिमला मिर्च की यह किस्म ठंडे मौसम में अच्छी तरह विकसित होती है। इसके फलों का रंग पकने के बाद पीला हो जाता है और इसका वज़न करीब 150 ग्राम होता है। इस किस्म में जल्दी बीमारियां नहीं पकड़ती और यह किस्म ग्रीन हाउस और खुले खेत दोनों में ही विकसित की जा सकती है। 

अर्का गौरव- इस किस्म की शिमला मिर्च के पत्ते पीले और हरे होते हैं और फल मोटे गूदे वाला होता है। एक फल का औसतन वजन 130-150 ग्राम तक होता है। पकने के बाद फल का रंग नारंगी या हल्का पीला हो जाता है। यह किस्म 150 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 16 टन होता है।

यलो वंडर- इस किस्म की शिमला मिर्च के पौधे मध्यम उंचाई वाले और पत्ते चौड़े होते हैं। इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं, जिसके ऊपर 3-4 उभार होता है। औसत उपज क्षमता 120-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

सोलन हाइब्रिड 2-  अधिक उपज वाली यह हाइब्रिड किस्म हैं, जिसके फल 60 से 65 दिनों में तैयार हो जाते है। इसके पौधे ऊंचे और फल चौकोर होते हैं। यह किस्म सड़न रोग और जीवाणु रोग से सुरक्षित रहती है। औसतन उपज क्षमता 325-375 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

कैलिफोर्निया वंडर- इस किस्म की शिमला मिर्च के पौधे मध्यम ऊंचाई वाले होते हैं। यह किस्म काफ़ी लोकप्रिय है और पैदावार भी अच्छी देती है। इसके फल गहरे हरे रंग के और चमकदार होते हैं। फलों का छिलका मोटा होता है। 75 दिन में फसल तोड़ने लायक हो जाती है। इसकी औसत उपज क्षमता 125-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

Capsicum Cultivation: शिमला मिर्च की खेती

Capsicum Cultivation: इसकी खेती खुले खेत और पॉलीहाउस दोनों जगह की जा सकती है। चिकनी दोमट मिट्टी इसके लिए अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा, बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी मात्रा में खाद डालकर और सही समय पर सिंचाई करके, इसमें भी शिमला मिर्च की खेती की जा सकती है। इस बात का ध्यान रहे कि खेत में पानी न जमा हो पाए।

इसकी खेती क्यारियां बनाकर की जाती है तो शिमला मिर्च की खेती के लिए जमीन की सतह से ऊपर उठाई और समतल क्यारियां ज्यादा अच्छी मानी जाती है। आमतौर पर 65-70 दिनों बाद शिमला मिर्च की फसल तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है, लेकिन कुछ किस्म को तैयार होने में 90 से 120 दिन का भी समय लग सकता है।

बाज़ार में रंगीन शिमला मिर्च की अधिक मांग है। यह 100 से 250 रुपये प्रति किलो तक बिक जाती है, जबकि हरी शिमला मिर्च 40 से 80 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है।

शिमला मिर्च मुख्य तौर पर हरी, लाल और पीली रंग की होती हैं। अगर आप भी शिमला मिर्च की खेती करने की सोच रहे हैं, तो शिमला मिर्च की उन्नत किस्में कौन सी हैं, आइए आपको बताते हैं।

Capsicum Cultivation: औषधीय गुणों वाले मशरूमों में से गैनोडर्मा की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी क़रीब 70 फ़ीसदी की है और ये राशि क़रीब 3 अरब डॉलर की है। लेकिन भारत में गैनोडर्मा की पैदावार ख़ासी कम है और माँग बहुत ज़्यादा। तभी तो देश में इसका 200 करोड़ रुपये से ज़्यादा का आयात होता है। कृषि वैज्ञानिक और संस्थान अब गैनोडर्मा मशरूम की खेती को बढ़ावा देने पर काम कर रहे हैं। 

बारानी या सूखाग्रस्त इलाकों के लिए मुंजा घास की खेती काफ़ी उपयोगी साबित हो सकती है। इसकी वैज्ञानिक और व्यावसायिक खेती से एक बार की पौधे लगाने के बाद 30-35 साल तक कमाई होती है। इससे सालाना प्रति हेक्टेयर 350 से 400 क्विंटल उपज प्राप्त की जा सकती है और इससे ढाई से तीन लाख रुपये की आमदनी हो सकती है।

फूलगोभी की खेती पंक्तियों में की जाए और पंक्तियों के बीच उचित दूरी का ध्यान रखा जाए, तो अच्छी फसल और ज़्यादा आमदनी की गारंटी है।

पंजाब की बीबी कमलजीत कौर ने किचन गार्डन में सब्ज़ियां उगाने से शुरुआत की और अब वो एक सफल महिला उद्यमी बन चुकी हैं।

किसान एन. विजयकुमार के पास 5 एकड़ भूमि है। उन्हें खेती में नुकसान उठाना पड़ता था। उन्नत तकनीकों की जानकारी का अभाव था। कैसे उन्होंने अपनी परिस्थिति बदली? पंडाल तकनीक के साथ क्या क्या तरीके अपनाए? जानिए इस लेख में।

25 से 28 फरवरी तक आयोजित होने वाले पंतनगर किसान मेले 2023 में आने वाले किसानों को कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों से सम्बधित उपयोगी जानकारियां हासिल करने का सुनहरा अवसर मिलेगा।

कपास की फसल में आमतौर पर गर्मी और बरसात के समय जो उमस वाला मौसम आता है उस समय कीट व बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में कीटनाशकों का छिड़काव सही तरीके से करना चाहिए। गुलाबी सूंडी कीड़े की वजह से भी फसल को काफी नुकसान होता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए कदम उठाना ज़रूरी है।

शकरकन्द उत्पादक देशों की सूची में भारत का छठा स्थान है। लेकिन भारत में शकरकन्द की उत्पादकता दर ख़ासी कम है। इसीलिए भारत में शकरकन्द की उन्नत खेती में उन्नत कृषि तकनीकों को अपनाना बेहद ज़रूरी है।

मोनिका पांडुरंग ने कृषि विज्ञान केंद्र, जालना से बीज उत्पादन, होली के प्राकृतिक रंग तैयार करने, दालों की प्रोसेसिंग, फलों और सब्जियों के मूल्यवर्धन पर ट्रेनिंग ली। वह हर साल 100 क्विंटल से भी ज़्यादा प्रमाणित और आधार बीज का उत्पादन कर रही हैं

पिछले दो साल के अंदर ही करीबन हज़ार किसानों ने मिनी इनक्यूबेटर का इस्तेमाल किया। इस तकनीक की मदद से मुर्गी पालन व्यवसाय में चूज़ों का उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाने में बड़ी सफलता हाथ लगी।

पानीपत के किसान जितेंद्र मलिक ने किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में बताया कि मशरूम की खेती से किस तरह मुनाफ़ा कमाया जा सकता है और कैसे लागत कम की जा सकती है।

राजस्थान का बाड़मेर ज़िला हमेशा से ही पानी की किल्लत से जूझता रहा है। ऐसे में यहां खेती की संभावना बहुत कम है और ज्वार, बाजरा, मूंग, मोठ जैसी बस चुनिंदा फसलें ही उगाई जाती रही हैं, लेकिन अब टिशू कल्चर मेथड से खजूर की खेती के ज़रिए किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है।

भारत में केसर की पैदावार का 90 फीसदी पुलवामा के पम्पोर इलाके में ही होता है और यहां के वर्तमान किसानों के पुरखे इसकी खेती करते रहे हैं।

थनैला किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन प्रसव के बाद इसके लक्षण उग्र हो जाते हैं। थनैला से संक्रमित गाय का दूध इस्तेमाल के लायक नहीं रहता। दूध उत्पादन गिर जाता है और पशु के इलाज़ का बोझ भी पड़ता है। लिहाज़ा, थनैला का शक़ भी हो तो फ़ौरन पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए

गर्मियों के दिनों में बाज़ार में तोरई की मांग बहुत होती है, इसलिए किसानों के लिएचिकनी तोरई की खेती करना बहुत लाभदायक है। जानिए इसकी उन्नत किस्मों के बारे में

Capsicum Cultivation: जीवाणु और फफूंद के कारण होने वाले रोग और कीटों से हर साल किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। अगर समय रहते रोग और कीटों की सही पहचान कर ली जाए, तो ज़रूरी कदम उठाकर किसान आर्थिक हानि से बच सकते हैं। ऐसा करने में पोल्टस्कोप माइक्रोस्कोप (Foldscope Paper Microscope) उनकी बहुत मदद कर सकता है।

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