Life and Success story: IAS गोविंद जायसवाल का नाम उन आईएएस ऑफिसर्स में लिया जाता है, जो बचपन से ही काफी संघर्ष कर इस ऊंचाई तक पहुंचे हैं। उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले गोविंद जायसवाल फिलहाल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में निदेशक के पद पर तैनात हैं।

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आईएएस गोविंद जायसवाल को ज़िंदगी के इस मुकाम तक पहुंचाने में उनके पिता और बहनों का काफी योगदान रहा है। गोविंद की पढ़ाई पूरी करवाने के लिए उनके पिता नारायण जायसवाल ने भी कई त्याग किए और संघर्ष की नई दास्तां लिखी। जानिए 2006 बैच के आईएएस ऑफिसर गोविंद जायसवाल की सक्सेस स्टोरी।
साल 2005 में आईएएस गोविंद जायसवाल की मां इंदु की ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई थी। गोविंद के पिता एक रिक्शा कंपनी के मालिक थे और उनके पास 35 रिक्शा थे। पत्नी के इलाज में उनके ज्यादातर रिक्शा बिक गए और वह गरीब हो गए. उस समय गोविंद 7वीं कक्षा में थे। कई बार गोविंद, उनकी तीनों बहनें और पिता सिर्फ सूखी रोटी खाकर भी गुजारा करते थे।
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Life and Success story गोविंद के पिता ने अपने चारो बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी नहीं रखी। उस समय गोविंद का पूरा परिवार काशी के अलईपुरा में 10X12 की एक कोठरी में रहता था। उन्होंने अपनी तीनों ग्रेजुएट बेटियों की शादी में अपने बचे हुए रिक्शे भी बेच दिए थे। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो गोविंद के घर का कुछ सामान अभी भी उस कमरे में रखा है और वह उसका किराया देते हैं ।

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Life and Success story गोविंद जायसवाल ने अपनी शुरुआती पढ़ाई उस्मानपुरा में स्थित एक सरकारी स्कूल से की थी। उसके बाद उन्होंने वाराणसी में ही स्थित हरिश्चंद्र यूनिवर्सिटी से मैथ में ग्रेजुएशन किया था। साल 2006 में गोविंद यूपीएससी परीक्षा (UPSC Exam) की तैयारी करने के लिए दिल्ली आ गए थे। गोविंद को पॉकेट मनी भेजने के लिए उनके पिता ने सेप्टिक और पैर में घाव होने के बावजूद रिक्शा चलाना शुरू कर दिया था।
Life and Success story गोविंद को रुपये भेजने के लिए उनके पिता कई बार खाना नहीं खाते थे। उन्होंने अपने घाव का इलाज तक नहीं करवाया था। वहीं, गोविंद भी दिल्ली जरूर गए थे लेकिन उन्होंने कोचिंग नहीं की थी। वह वहां बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे। रुपये बचाने के लिए उन्होंने एक टाइम का टिफिन और चाय बंद कर दी थी। इतने त्याग और मेहनत के बाद गोविंद ने अपने पहले ही प्रयास में साल 2007 में 48वीं रैंक हासिल की और IAS अफसर बन गए।