केंद्र सरकार के नए श्रम कानून के 1 जुलाई से लागू होने की अटकलें हैं। इसमें रोजाना काम के घंटों की सीमा 8 से बढ़ाकर 12 घंटे करने के साथ ही साप्ताहिक काम के घंटों को 48 घंटे तक सीमित रखने की अनुमति दी गई है
New Labour Codes : केंद्र सरकार के नए श्रम कानून के 1 जुलाई से लागू होने की अटकलें हैं। इसमें रोजाना काम के घंटों की सीमा 8 से बढ़ाकर 12 घंटे करने के साथ ही साप्ताहिक काम के घंटों को 48 घंटे तक सीमित रखने की अनुमति दी गई है।
इसके साथ ही कंपनी 4 दिन के कामकाजी सप्ताह की दिशा में कदम बढ़ा सकती है, लेकिन नियम उसे काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 घंटे करने की अनुमति देते हैं। नया नियम लागू होने के बाद कंपनियां और कर्मचारियों को तीन दिन की छुट्टी दे सकेगी।

इसके लिए कर्मचारियों को चार दिन प्रति दिन 10 से 12 घंटे काम करना होगा। इस बदलाव का मतलब यह होगा कि ओवरटाइम के अधिकतम घंटे 50 घंटे (कारखाना अधिनियम के तहत) से बढ़कर 125 घंटे हो जाएंगे।
डेडलाइन से चूकी सरकार
वर्कर यूनियंस ने इस सप्ताह न्यूज साइट न्यूजक्लिक को बताया कि केंद्र सरकार नए श्रम कानूनों को लागू करने कई बार डेडलाइंस से चूक गई है।
इस्तीफे के दो दिन में करना होगा भुगतान
श्रम कानूनों में पूरे वेतन के भुगतान के नियम भी शामिल हैं। नियमों में प्रावधान किया गया है कि मौजूदा कंपनी या संस्थान से इस्तीफा, निकाले जाने, हटाए जाने के दो कामकाजी दिन के भीतर भुगतान करना होगा। वर्तमान में सभी राज्यों ने दो कामकाजी दिन की इस टाइमलाइन के लिए “इस्तीफे” को शामिल नहीं किया है।
बेसिक सैलरी कुल वेतन की 50 फीसदी
नए ड्राफ्ट रूल के अनुसार, बेसिक सैलरी कुल वेतन का 50% या अधिक होना चाहिए। इससे ज्यादातर कर्मचारियों के वेतन का स्ट्रक्चर बदल जाएगा, बेसिक सैलरी बढ़ने से पीएफ और ग्रेच्युटी का पैसा ज्यादा पहले से ज्यादा कटेगा। पीएफ बेसिक सैलरी पर आधारित होता है। पीएफ बढ़ने पर टेक-होम या हाथ में आने वाली सैलरी कम हो जाएगी।
बढ़ जाएगा रिटायरमेंट पर मिलने वाला पैसा
ग्रेच्युटी और पीएफ में योगदान बढ़ने से रिटायरमेंट के बाद मिलने वाला पैसा बढ़ जाएगा। इससे कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद बेहतर जीवन जीने में आसानी होगी। पीएफ और ग्रेच्युटी बढ़ने से कंपनियों के लिए लागत में भी बढ़ोतरी होगी क्योंकि उन्हें भी कर्मचारियों के लिए पीएफ में ज्यादा योगदान देना होगा। इसका सीधा असर उनकी बैलेंसशीट पर पड़ेगा।
चारों लेबर कोड नियमों के लागू होने से देश में निवेश को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के मौके बढ़ेंगे। लेबर कानून देश के सविंधान का अहम हिस्सा है। अभी तक 23 राज्यों ने लेबर कोड नियम के रूल्स बना लिए हैं।
4 कोड में बंटा है कानून
भारत में 29 सेंट्रल लेबर कानून को 4 कोड में बांटा गया है। कोड के नियमों में वेतन, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक संबंध (Industrial Relations) और व्यवसाय सुरक्षा (Occupation Safety) और स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति आदि जैसे 4 लेबर कोड शामिल है। अभी तक 23 राज्यों ने इन ड्राफ्ट कानूनों को तैयार कर लिया है।
संसद द्वारा इन चार संहिताओं को पारित किया जा चुका है, लेकिन केंद्र के अलावा राज्य सरकारों को भी इन संहिताओं, नियमों को अधिसूचित करना जरूरी है। उसके बाद ही ये नियम राज्यों में लागू हो पाएंगे। ये नियम बीते साल 1 अप्रैल 2021 से लागू होने थे लेकिन राज्यों की तैयारी पूरी नहीं होने के कारण इन्हें टाल दिया गया।
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